अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : भारत से हज जाने के लिए हमेशा आवदेन-कर्ता ज़्यादा होते हैं और सीटें कम. ऐसे में बहुत से ऐसे लोग जिनका नंबर हज कमिटी के ड्रॉ में नहीं आता, वो अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करके वीआईपी कोटे से हज चले जाते थे. 2012 तक ऐसी सीटों की संख्या 2500 तक थी.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 23 जुलाई, 2012 के एक निर्णय में इसे कम करके सिर्फ़ 240 कर दिया. जस्टिस आफ़ताब व रंजना प्रकाश देसाई ने इस 240 में से भारत के राष्ट्रपति के लिए 70 सीटें, उप-राष्ट्रपति के लिए 60 सीटें, प्रधानमंत्री के लिए 60 सीटें और विदेश मंत्रालय के लिए 50 सीटें रिजर्व कर दी. बाक़ी के 2,260 सीटें जनरल कैटेगरी की झोली में डाल दिया.
TwoCircles.net ने इस मामले में जब और जानकारी जुटाने की कोशिश की तो पता चला कि सुप्रीम कोर्ट के इस दिशा-निर्देश का खुला उल्लंघन हज कमिटी ऑफ इंडिया कर रही है.
बताते चलें कि 07 मई, 2015 को राज्य सभा में सांसद नज़ीर अहमद लवाय ने विदेश मंत्रालय से जब इस संबंध में सवाल पूछा तो विदेश राज्य मंत्री जनरल वी. के. सिंह ने अपने लिखित उत्तर में बताया कि विशिष्ट हस्तियों की संस्तुति पर आवंटित किए जाने वाले कोटा को 300 तक नियत कर दिया गया है. भारत के राष्ट्रपति के लिए 100 सीट रिजर्व की गई हैं. वहीं भारत के उपराष्ट्रपति के लिए 75 सीट, प्रधानमंत्री के लिए 75 सीट और विदेश मंत्री के लिए 50 सीट रिजर्व हैं.
लेकिन इस साल 2017 में जो सीटों का आवंटन किया गया है उसमें वीआईपी कोटे में 500 सीटें दिखाई गई हैं. ये जानकारी खुद इस साल हज कमिटी ऑफ इंडिया और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय ने जारी किया है. यानी भारत से इस बार 500 ऐसे लोग हज को जाएंगे जिनका पॉलिटिकल कनेक्शन ठीक-ठाक है.
इस संबंध में हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के सीईओ मो. शहबाज़ अली से बात करने पर वो कहते हैं कि, मुझे इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है. मुझे यहां आए तक़रीबन दो महीने हुए ही हुए हैं और कोटे का आवंटन मेरे आने से पहले किया जा चुका था.
बताते चलें कि शहबाज़ अली को हज कमिटी ऑफ इंडिया का एडिश्नल चार्ज मिला है. ये फिलहाल नेशनल माईनॉरिटीज़ डेवलपमेंट एंड फाईनेंस कॉरपोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं.
इस बीच मुज़फ़्फ़रनगर से एक ख़बर आई है, जिसमें इस बात का प्रचार किया जा रहा है कि आरएसएस से जुड़े एक कार्यकर्ता ने एक मुसलमान को हज पर जाने में मदद कर दी. इसके प्रचार के लिए खुद आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ताओं ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर ज़ोर-शोर से इस बात का प्रचार कर रहे हैं कि केन्द्रीय मंत्री संजीव बालियान जो मुज़फ़्फ़रनगर से ही सांसद हैं, उन्होंने एक चिट्ठी केन्द्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी के नाम लिखी और इनके चलते एक मुसलमान के हज जाने का सपना पूरा हो गया.
हज के मामलों पर काम करने वाले मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता अत्तार अज़ीमी बताते हैं कि हर दौर में सरकार ने अपने लोगों को इस कोटे से हज के लिए भेजा है.
इनका आरोप है कि, मेरे सामने कई मामले ऐसे आएं हैं, जिसमें इन्होंने अपनी सीटें महंगी क़ीमतों पर बेची भी हैं. अब केन्द्र में भाजपा की सरकार है तो ज़ाहिर है कि आरएसएस के लोगों की सिफ़ारिश सबसे ज़्यादा काम आएगी.
वो ये भी बताते हैं कि, जब सुप्रीम कोर्ट ने वीआईपी कोटे के लिए सीटें तय कर दी हैं, तो ऐसे में इस कोटे की सीटें बढ़ा लेना काफी गंभीर मामला है. अदालत को इस मामले को अपने संज्ञान में लेना चाहिए.
स्पष्ट रहे कि क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है —“लोगों पर यह अल्लाह का हक़ है कि जो उस घर तक पहुंचने का सामर्थ्य रखता हो, वो हज करे.” (क़ुरआन, 3:97)
लेकिन लगता है कि भारतीय मुसलनानों में से कुछ लोगों ने यहां ‘सामर्थ्य’ का मतलब कुछ और समझ लिया है. ‘सामर्थ्य’ का मतलब ये क़तई नहीं होता है कि आप आरएसएस कार्यकर्ता की मदद से या फिर मंत्री की सिफ़ारिश से इस पवित्र हज पर जाईए.
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