देश की माटी ने पुकारा तो लौट आईं वतन, बनीं आईपीएस

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

विदेशों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी इल्मा अफ़रोज़ को अपनी माटी ने जब आवाज़ दी तो वह खुद को रोक नहीं पाईं और न्यूयॉर्क जैसे शहर  से नौकरी छोड़कर देश सेवा की भावना के साथ अपने वतन लौट आईं.


Support TwoCircles

इल्मा की कहानी इन सब बातों से भी बहुत ऊपर है. इल्मा उन नौजवानों के लिए एक बेहतरीन प्रेरणास्त्रोत हैं, जिनके पिता किसान हैं या फिर जो यतीम हैं. इल्मा ने इस बार यूपीएससी के सिविल सर्विस के इम्तेहान में 217वीं रैंक हासिल की है.

इल्मा कहती हैं कि, मेरी इस कामयाबी में सबसे अहम रोल मेरे छोटे भाई का रहा है. मेरा भाई आम भाईयों की तरह नहीं है, जो मुझे बोलता कि जाकर आलू-प्याज़ काटो, किचन संभालो. मैंने कहा कि मुझे पेरिस जाना है, तो उसने जैसे-तैसे करके मुझे पेरिस भेजा. मैं जो कुछ भी हूं, अपने भाई की वजह से हूं.

इल्मा का भाई अराफ़ात अफ़रोज़ इनसे तीन साल छोटा है. इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से बीए (ऑनर्स) संस्कृत की पढ़ाई की है और ये भी इन दिनों सिविल सर्विस की तैयारी में लगे हुए हैं. 

यहां पढ़ें : ‘आपके दिल व दिमाग़ में जितने ग़लत ख़्यालात हैं, सबको निकाल दीजिए…’

मुरादाबाद के कुंदरकी में जन्मीं 26 साल की इल्मा की उम्र जब महज़ 14 साल थी, तो इनके अब्बू क़ाज़ी अफ़रोज़ गुज़र गए. फिर इनकी मां सुहैला परवीन ने इन्हें पढ़ाया-लिखाया और इल्मा दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेन कॉलेज पहुंच गईं. इनकी दसवीं तक की पढ़ाई कुंदरकी में ही हुई है. फिर मुरादाबाद के विलसोनिया इंटर कॉलेज से इंटर की पढ़ाई की.

सेन्ट स्टीफेन से बैचलर डिग्री हासिल करने के बाद इल्मा एक एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत पेरिस गईं. फिर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. पढ़ाई मुकम्मल होने के बाद यूनाईटेड नेशन्स, इंडोनेशिया के साथ काम करने लगीं. फिर न्यूयॉर्क चली गईं.

फोटो : आस मुहम्मद कैफ़

इल्मा बताती हैं कि, जब मैं पेरिस जा रही थी, तब मेरी अम्मी बहुत तेज़ धूप में खेतों में काम कर रही थीं. पसीने पोंछ कर फ़सल काट रही थीं. एयरोप्लेन में मैं यही सोचती रही कि मैं ए/सी की ठंडी हवा में बैठी हूं, अम्मी तेज़ धूप में काम कर रही होंगी. पेरिस की लाईफ़-स्टाईल को फॉलो करते हुए भी मैं घर के बारे में सोचती रही. ऑक्सफोर्ड व न्यूयॉर्क के चकाचौंध में भी ये ख़्याल आता रहा कि मैंने अपनी ज़िन्दगी तो सेट कर ली, लेकिन उन लोगों को क्या मिला, जिन्होंने न जाने कितनी मुसीबतों से गुज़र कर मुझे पढ़ाया है. उन्हें तो कुछ मिला नहीं. उनकी लाईफ़-स्टाईल तो वहीं की वहीं है. वही मच्छर, वही बिजली का लगातार गायब रहना. इसका अहसास मुझे हमेशा रहा.

यहां पढ़ें : क्या सोचते हैं यूपीएससी की परीक्षा में मुसलमानों के टॉपर रहे साद मियां खान?

वो बहुत भावुक होते हुए आगे बताती हैं कि, मैं जब बीच-बीच में घर आती थी तो वो मेरे तरफ़ देखते थे. उनकी आंखों की चमक को तो मैं कभी नहीं भूल सकती. मुझे ये लगा कि उनकी आंखों में ये चमक इसलिए भी है कि उन्हें लग रहा होगा कि मैं अपनी पढ़ाई से उनकी ज़िन्दगी की समस्याओं को कुछ कम कर दूंगी. मुझे इस बात का अहसास था कि इनसे दूर रहकर, न्यूयॉर्क में विदेशी कम्पनियों की नौकरी करके तो समस्याएं ख़त्म नहीं होने वाली हैं. इसलिए मुझे लगा कि मेरी जगह बस इसी मुल्क की मिट्टी में है. मुझे अपनी मिट्टी में ही रहकर कुछ करना चाहिए.

इल्मा कहती हैं कि, मेरे घर में मिट्टी का अहसास बड़ा गहरा है. जब इसी मिट्टी से निकली फ़सलें बाज़ार में बिकती थीं तो मेरी किताबें आती थीं. ये मिट्टी, ये ज़मीन मेरे ज़ेहन में इस क़दर बसी हुई है कि मैं इसे छोड़ना तो दूर, इसके बग़ैर रहने की सोच भी नहीं सकती. यहीं से मैंने सिविल सर्विस में जाने का सोचा. अपने वतन वापस लौटी, फिर सिविल सर्विस की तैयारी में लग गई. और अब मैं आईपीएस हो चुकी हूं.

यहां पढ़ें : खुदी ना बेच ग़रीबी में नाम पैदा कर : यूपीएससी में कामयाब रहे शेख़ सलमान की प्रेरणादायक कहानी

इल्मा की अम्मी अभी भी खेती करती हैं. इल्मा कहती हैं कि, अम्मी ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया है. उन्होंने ही मुझे सीख दी कि हिम्मत से अपने रास्ते पर लगी रहो. पैसे तो हमारे पास थे नहीं, बस अल्लाह का सहारा था. कॉलेज के दिनों से ही मुझे स्कॉलरशिप मिलती रही और मैं पढ़ती रही. अपना खर्च चलाने के लिए डिबेट में हिस्सा लिया करती थी. आज कह सकती हूं कि इस वजह से मैं इंटरनेशनल डिबेटर हूं.

यहां पढ़ें : बनना तो मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘राजा’ ही है, अगले साल ज़रूर बनूंगा…

इल्मा ने बतौर सब्जेक्ट फिलॉस्फ़ी को चुना था. वो बताती हैं कि सेन्ट स्टीफ़न्स में मैंने बीए (ऑनर्स) फिलॉस्फी की है. यहां मुझे टीचरों ने इतना अच्छा पढ़ाया था कि फिलॉस्फ़ी से बेहतर कुछ लगा ही नहीं. इसके लिए मैं सारी उम्र अपने उस्ताद का शुक्रिया अदा करूं तो भी उनका क़र्ज़ नहीं उतार सकती. मुझे आगे बढ़ाने में मेरे फ़िलॉस्फी टीचर का बहुत अहम रोल रहा है.

यहां पढ़ें : ऐसा कुछ करके चलो यहां कि बहुत याद रहो…

इल्मा को लिखने-पढ़ने का बहुत शौक़ रहा है. आप डेलीओ नामक वेबसाइट में लिखती रही हैं. इसके अलावा इल्मा को खेती में बहुत दिलचस्पी रही है. वो कहती हैं कि, अगर मैं घर पर हूं तो मैं अपने खेतों को देखती हूं. मुझे सबसे ज़्यादा खुशी अपने खेतों को देखकर ही मिलती है. खेती में बहुत कुछ है, बस थोड़े से ट्रिक्स अपनाने होते हैं, फिर यक़ीनन आपकी आमदनी दोगुनी हो जाएगी. मैंने अपने बचपन में बाबा से बहुत कुछ सीखा है. मेरे खेतों में शहद की पेटियां भी रखी हैं और हम कई तरह की फ़सलें भी उगाते हैं.

यहां पढ़ें : मेरी ख़्वाहिश कलक्टर बनने की थी और अब भी है, इंशा अल्लाह कलक्टर ज़रूर बनूंगी…’

फोटो : आस मुहम्मद कैफ़

इल्मा कहती हैं कि, बनना तो मुझे आईएएस था. मुझे इस रैंक पर आईएफ़एस मिल सकती है, लेकिन मैं अब पुलिस सर्विस में जाना चाहती हूं, तो आईपीएस बनकर ही देश की सेवा करूंगी.

उनका यह भी कहना है कि भारत के संविधान के तहत मुझे जो भी ज़िम्मेदारी सौंपी जाएगी, मैं पूरी निष्ठा के साथ उसका पालन करूंगी. मेरी प्राथमिकता हमेशा यही रहेगी.

यहां पढ़ें : पुलिस के ‘रूतबे’ से मिली पुलिस सर्विसेज़ में जाने की प्रेरणा —मो. नदीमुद्दीन

तैयारी के बारे में पूछने पर बताती हैं कि, मैंने इसकी अलग से कोई ख़ास तैयारी नहीं की. इसके लिए मेरी पूरी पढ़ाई बहुत काम आई. मैं यह भी कहना चाहूंगी कि बजाए कोचिंग के खुद पर भरोसा रखिए. मुझे नहीं लगता है कि कोचिंग में पढ़कर कोई आईएएस बन सकता है. आईएएस बनेगा तो अपनी मेहनत से, अपनी हिम्मत से.

वो कहती हैं, कोचिंग के लिए दिल्ली के राजेन्द्र नगर या मुखर्जी नगर में रहना ही एक सज़ा है. इसीलिए मेरे छोटे भाई ने भी कोई कोचिंग ज्वाईन नहीं की है. वो भी मेरी तरह लाईब्रेरी में बैठकर खुद से तैयारी कर रहा है.

यहां पढ़ें : यूपीएससी रिज़ल्ट : पढ़िए 9 मुस्लिम होनहारों की शानदार कहानी

सिविल सर्विस की तैयारी करने वालों को अपना संदेश देते हुए इल्मा कहती हैं कि, ये एक लंबी प्रक्रिया है. इसमें सफलता-विफलता सब मिलती है. तो सबसे ज़रूरी यह है कि अपने मां-बाप, अपने भाई-बहनों से अलग मत होईए. उनसे रोज़ाना बात कीजिए. उन्हें पूरा समय दीजिए. इससे आप दिमाग़ी तौर पर बहुत मज़बूत रहेंगे. और इसका फ़ायदा आपको मेन्स लिखने और इंटरव्यू देने यानी दोनों में मिलेगा. आपको कभी डिप्रेशन नहीं होगा. और हां, सोशल मीडिया, मोबाईल और टीवी से खुद को दूर रखने की कोशिश कीजिए. खुद की मेहनत पर भरोसा रखिए, इंशा अल्लाह कामयाबी आपके क़दम चूमेगी.

यहां पढ़ें : इन 52 मुस्लिम होनहारों ने यूपीएससी में दिखाया अपना दम, पूरी सूची यहां है मौजूद

मुस्लिम नौजवानों से इल्मा कहना चाहती हैं कि, हम सब भी इसी मुल्क की  मिट्टी में जन्मे हैं. इसी मिट्टी में जिएंगे और मरेंगे. इससे हम सबको बहुत मुहब्बत है. और हम हमेशा इसकी सेवा करेंगे. ये सोच आज हर मुस्लिम नौजवान की है. ऐसे में ज़रूरत है कि हम ज़्यादा से ज़्यादा सिविल सर्विस में आने के बारे में सोचें. हमें अब यक़ीनन थोड़ा ऊंचा ख़्वाब देखने की ज़रूरत है. जब हम ऊंचे ख़्वाब देखेंगे और उसे पाने के लिए मेहनत करेंगे तभी कुछ मुमकिन होगा. अल्लाह आपको एक न एक दिन कामयाबी से ज़रूर नवाजेंगे…    

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE